Friday, November 30, 2007

खामोशी का कोलाहल

अंतस की प्रशांत गह्रइयो की करक कही गहरे और बरी मारक कसक पैदा करती है . अब इसे हूक कहे या खामोशी पर बार ही सर्द अहसास है ये वास्तव में इसकी सरद और गहनता इतनी जादा होती है की ठंड कही से भी , कभी भी गुलाबी न नज़र आती है, न ही महसूस होती है. इन सर्दियों के साथ मेरे जीवन में तमामो तमाम दस्तके juri है जो एक सम टाल पर uttaal होकर गूंज और अनुगूँज का अदभुद संगीत पैदा करती है . संगीत जो जीवन है , संगीत जो शांत चिरनिद्रा (मौत ) की सुखद लोरी भी है .
इन दस्तको से पैदा हुआ जीवन संगीत सभी के लीये बरा ही सुखद होता है . मधुर मधुर आम की बौरों की खुशबु मिली पुरवाई की तरह ,पर मैं aisee किसी भी anubhuti से दो char नहीं हो paata . mere लीये aksar ये एक ananat koop से पैदा huee dhwanee है, jiska सुर lay टाल मेरे लीये ajana रहा हो , एक dum aboojh भी .
इस अबूझ पहेली का अपना ही संत्रास है , अपना ही कस्ट है . इस तरस की पीरा सघन और सघंतम होती जाती है , जब हमारा मस्तिस्क ये जानने लगता है और बाद में क्रमशः स्वीकार भी लेता है की इन तमाम अन-अनुभूत परिस्थितियों और तमामो तमाम अबूझ पहेलियों का सर्जक वो स्वयम है

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