वक़्त आदमी को बदल देता है , या आदमी वक़्त के हिसाब से खुद को बदल लेता है कहना मुश्कील है । मैं एक छोटासा बच्चा था और तलाशता रहता था शुकून . समय के बीतते थपेरो से अनजान अपनी मंजिल की तलाश मेभटकते अपने कल को अपनी छोटी छोटी आंखो से देखने की कोशीश करता और नाकाम रहता । वो समय था की जब सोचता था काश - काश इस आने वाले कल को देख पाता वो देख पाना न तब संभव था नआज है । पर वो आने वाला कल ऐसा हॊगा इसकी कल्पना भी नही थी । मैंने कल को आकार लेते रात दीन जग के देखा है । की जब सारी दुनीया सोती रहती थी मैं जगता रहता था , इसकोशीश मे की मैं अपने कल को सँवार रहा हू , ये कल इतना बदसूरत हॊगा सोचा न था । वो कल था जब रात रातभर जग के मैं अपने कल को आकार दे रहा था , वो सब कुछ कीतना अमूर्त सा था पर एक अहसास था की इसकेबाद एक सुख की नीद होगी , बस एक रात की भी पर काम से काम एक रात भी सुख और संतोष भरी नीद होगी ( कई रातो से तो मैं सोया ही नही हू ) पर अब बस सो लू एक रात सो लू एक पूरी नीद इसको तरस गया हू । मैं आज भी रात रात भर जगता रहता हू कीतना बदल गया हू मैं , कितने दीन हुए आइना नही देखा , कपडे पहनके खुद को देखे अरसा हो गया की मैं कैसा लगता हू । अक्सर तलाशता था उस चेहरे को , जो की मेरे साथ हमसफ़र बन के चलने वाला था पर नही पता था मेराहमसफर हमसफ़र होते हुए भी , मेरे साथ चलते हुए भी इतना अजनबी हॊगा । पल भर को कीसी के पहलू मे बैठने को तरस जाता हू , तरसता हू एक गोंद को की जहा सीर रख के थोरी देर सुस्तालू , थक के आता हू और बंद पड़े कमरे मे नीढाल हो जाता हू , यही मेरी जीन्दगी है । अब तो उसके नाम से भी नफरत होती है , उसे कीतना चाह था मैंने , कीतना प्यार कीया था , अब लगता हैउसनेमुझे
बुरी तरह छला , मेरा एकांत अक्सर मुझसे सवाल करता है उसने मेरे साथ ऐसा क्यो कीया , मुझसे बस एक बारकहती , बस एक बार , की उसके भीतर क्या चल रहा है , मैं बड़ी है खामोशी से उसकी जीन्दगी से नीकल आता , पर उसने ऐसा क्यो कीया ? काश मेरे पास इस सवाल का जबाब होता , पर मैं जीन्दा हू और जान भी बाकी है वक़्त बेशक आज मेरे आज की बड़ी है बद्शकल सूरत पेश कर रहा हो , पर ये मुझे स्वीकार नही है । सुनो ज्योत्सना मुझे ये स्वीकार नही है मुझे वाकई ये स्वीकार नही है और तुम या कोई भी मुझे तोड़ नही सकता ,
पर टूट तो रहा ही हू ।
बुरी तरह छला , मेरा एकांत अक्सर मुझसे सवाल करता है उसने मेरे साथ ऐसा क्यो कीया , मुझसे बस एक बारकहती , बस एक बार , की उसके भीतर क्या चल रहा है , मैं बड़ी है खामोशी से उसकी जीन्दगी से नीकल आता , पर उसने ऐसा क्यो कीया ? काश मेरे पास इस सवाल का जबाब होता , पर मैं जीन्दा हू और जान भी बाकी है वक़्त बेशक आज मेरे आज की बड़ी है बद्शकल सूरत पेश कर रहा हो , पर ये मुझे स्वीकार नही है । सुनो ज्योत्सना मुझे ये स्वीकार नही है मुझे वाकई ये स्वीकार नही है और तुम या कोई भी मुझे तोड़ नही सकता ,
पर टूट तो रहा ही हू ।
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